1 Samuel 2
1 हन्नाह ने प्रार्थना की और कहा: ‘मेरा हृदय प्रभु में फूला नहीं समा रहा है। मेरे परमेश्वर के कारण मेरा सिर ऊंचा हुआ है। अब अपने शत्रुओं के प्रति मेरा मुँह खुल गया है; अपने उद्धारकर्ता के कारण मैं आनन्द मनाती हूँ।
2 ‘प्रभु के सदृश कोई पवित्र नहीं है। निस्सन्देह उसके अतिरिक्त कोई नहीं है। हमारे परमेश्वर जैसी कोई चट्टान नहीं है।
3 अब गर्व के बोल मत बोलो। तुम्हारे मुँह से धृष्ट वचन न निकलें; क्योंकि प्रभु सर्वज्ञ परमेश्वर है, वही कर्मों को तौलता है।
4 शक्तिशाली योद्धाओं के धनुष टूट गए, पर निर्बल शक्ति-सम्पन्न हो गए।
5 भर पेट भोजन करने वालों को अब रोटी के लिए मजदूरी करनी पड़ी; किन्तु भूखों को लूट के कारण भूख से छुट्टी मिल गई। बांझ स्त्री ने सात बार जन्म दिया, पर अनेक पुत्रों की माता उजड़ गई!
6 ‘प्रभु ही प्राण लेने वाला, और वही प्राण देने वाला है! वही अधोलोक में ले जाने वाला, और वही मृतक को जिलाने वाला है।
7 प्रभु ही व्यक्ति को निर्धन बनाने वाला, और वही धनवान बनाने वाला है; वही गिराने वाला, और वही उठाने वाला है।
8 वह दुर्बलों को धूल से उठाकर खड़ा करता है, दरिद्रों को राख के ढेर से निकालकर उठाता है। वह उन्हें शासकों के साथ बैठाता है; वह उन्हें सम्मानित आसन का उत्तराधिकारी बनाता है; क्योंकि पृथ्वी के आधार-स्तम्भ प्रभु के ही हैं, इन पर ही उसने जगत को खड़ा किया है।
9 ‘अपने भक्तों के कदमों की रक्षा प्रभु करता है; किन्तु अन्धकार में दुर्जन चुप किए जाएँगे; क्योंकि मनुष्य केवल अपने बाहु-बल से प्रबल नहीं होता है।
10 प्रभु के विरोधी टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएँगे; सर्वोच्च प्रभु आकाश से उन पर गरजेगा। वह पृथ्वी के सीमांतों तक न्याय करेगा; वह अपने राजा को शक्ति प्रदान करेगा, और अपने अभिषिक्त का सिर ऊंचा उठाएगा।’
11 तत्पश्चात् हन्नाह अपने घर रामाह नगर चली गईं। बालक शमूएल पुरोहित एली की उपस्थिति में प्रभु की सेवा करने लगा।
12 एली के पुत्र बदमाश और गुण्डे थे। उन्हें प्रभु का अनुभव नहीं था।
13 आराधकों के सम्बन्ध में पुरोहित की यह प्रथा थी: जब कोई व्यक्ति पशु की बलि करता तब पुरोहित का सेवक अपने हाथ में त्रिशूल लेकर आ जाता था।
14 जब मांस कड़ाही, देगची, हण्डा अथवा हण्डी में पकने लगता तब सेवक त्रिशूल को उस में चुभोता था। जो मांस त्रिशूल में लग जाता, वह पुरोहित ले लेता था। शिलोह में आने वाले हरएक इस्राएली के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता था।
15 इसके अतिरिक्त पुरोहित का सेवक चर्बी जलाने के पूर्व बलि चढ़ाने वाले व्यक्ति के पास आता, और उससे यह कहता था, ‘भूंजने के लिए पुरोहित का मांस दो। वह तुमसे पका हुआ मांस नहीं, वरन् कच्चा मांस लेंगे।’
16 यदि बलि चढ़ाने वाला व्यक्ति उसको यह उत्तर देता, ‘पहले उन्हें चर्बी जला लेने दो। उसके बाद जितना मांस लेने की इच्छा हो, उतना ले लेना’, तो सेवक उससे कहता था, ‘नहीं! मुझे अभी कच्चा मांस दो। यदि तुम नहीं दोगे तो मैं उसको बल-पूर्वक ले लूँगा।’
17 युवा पुरोहितों का यह पाप प्रभु की दृष्टि में अत्यन्त गंभीर था, क्योंकि वे प्रभु की भेंट का तिरस्कार करते थे।
18 बालक शमूएल प्रभु के सम्मुख सेवा करता था। वह कमर में सूती लुंगी पहनता था।
19 उसकी माँ उसके लिए प्रति वर्ष एक छोटा लबादा बनाती थी। जब वह अपने पति के साथ वार्षिक बलि चढ़ाने के लिए शिलोह जाती तब उसको शमूएल के पास ले जाती थी।
20 पुरोहित एली एलकानाह और उसकी पत्नी हन्नाह को आशीर्वाद देता, और यह कहता था, ‘जो पुत्र इस स्त्री ने प्रभु को अर्पित किया है, उसके स्थान पर प्रभु तुम्हें इस स्त्री के द्वारा संतति प्रदान करे।’ उसके बाद वे अपने घर चले जाते थे।
21 प्रभु ने हन्नाह की सुधि ली। उसका गर्भ खुल गया। उसने तीन पुत्रों और दो पुत्रियों को जन्म दिया। बालक शमूएल प्रभु के पवित्र स्थान में बड़ा हुआ।
22 अब एली बहुत वृद्ध हो गया था। वह सुना करता था कि उसके पुत्र इस्राएलियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। वे मिलन-शिविर के प्रवेश-द्वार में सेवा करने वाली स्त्रियों से सम्भोग करते हैं।
23 अत: उसने अपने पुत्रों से कहा, ‘तुम ये काम क्यों कर रहे हो? मैं तुम्हारे कुकर्मों के विषय में लोगों से सुन रहा हूँ।
24 नहीं, मेरे पुत्रो! जिन बातों को प्रभु के लोग सर्वत्र फैला रहे हैं, और जिन्हें मैं सुन रहा हूँ, वे अच्छी नहीं है।
25 यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति अपराध करता है, तो परमेश्वर उसके लिए हस्तक्षेप करता है। परन्तु यदि व्यक्ति स्वयं प्रभु के प्रति पाप करेगा तो कौन उसकी क्षमा के लिए प्रार्थना कर सकता है?’ पुत्रों ने अपने पिता की बातों पर कान नहीं दिया; क्योंकि यह प्रभु की इच्छा थी कि वे मर जाएँ।
26 बालक शमूएल बड़ा होता जा रहा था; न केवल कद में, वरन् प्रभु और लोगों की कृपा-दृष्टि में भी।
27 एक दिन परमेश्वर का एक प्रियजन एली के पास आया। उसने एली से कहा, ‘प्रभु ने यह कहा है: “जब तेरा पितृ-कुल मिस्र देश में फरओ राजाओं का गुलाम था तब मैंने उस पर स्वयं को प्रकट किया था।
28 मैंने इस्राएल के सब कुलों में से तेरे पितृ-कुल को चुना था कि वह मेरा पुरोहित बने, मेरी वेदी के निकट आए, सुगंधित धूप-द्रव्य जलाए, और मेरे एपोद को वहन करे। जो अग्नि-बलि इस्राएली मुझे चढ़ाते थे, वह सब मैं तेरे पितृ-कुल को दे देता था।
29 तब तू क्यों मेरी बलि और भेंटों को, जिनको चढ़ाने की आज्ञा मैंने इस्राएलियों को दी है, लोलुप दृष्टि से देखता है? तू अपने पुत्रों को मुझसे अधिक आदरणीय समझता है जिससे वे मेरे इस्राएली लोगों की प्रत्येक भेंट का सर्वोत्तम अंश खाकर स्वयं को पुष्ट करें?”
30 इसलिए इस्राएल के प्रभु परमेश्वर की यह घोषणा है: “यद्यपि मैंने निस्सन्देह यह कहा था कि तेरा पितृ-कुल सदा मेरे सम्मुख रह कर मेरी सेवा करेगा, और मेरा कृपा-पात्र बनेगा, तथापि अब मुझ-प्रभु की यह गंभीर घोषणा है: मेरी यह बात मुझ से दूर हो! मैं अपने आदर करने वालों का आदर करूँगा, और मुझे तुच्छ समझने वालों को तुच्छ समझूँगा।
31 देख वे दिन आ रहे हैं, जब मैं तेरी संतति को, तेरे पितृ-कुल के आधार-स्तम्भ को तोड़ दूँगा। फलत: तेरे परिवार में वृद्ध पुरुष नहीं रह जाएगा।
32 तब तू अपनी दुर्दशा में इस्राएलियों की समृद्धि जो मैं उन पर बरसाऊंगा ईष्र्या की दृष्टि से देखेगा । तेरे परिवार में कोई वृद्ध पुरुष कभी नहीं होगा!
33 मैं तुम में से एक पुरुष को अपनी वेदी के सम्मुख से न हटाकर जीवित रखूँगा, जिससे रो-रोकर उसकी आँखें धंस जाएँ, और उसके प्राण मुरझा जाएँ। तेरे परिवार के समस्त सदस्य तलवार से मृत्यु के घाट उतार दिए जाएँगे।
34 जो घटना तेरे दोनों पुत्रों, होफ्नी और पीनहास, के साथ घटेगी, वह तेरे लिए एक संकेत-चिह्न होगा। घटना यह है कि तेरे दोनों पुत्रों की मृत्यु एक ही दिन होगी।
35 मैं अपने लिए एक विश्वसनीय पुरोहित नियुक्त करूँगा, जो मेरे हृदय और प्राण की इच्छा के अनुसार कार्य करेगा। मैं उसके लिए सुदृढ़ घर का निर्माण करूँगा। वह मेरे अभिषिक्त के सम्मुख सदा रहकर उसकी सेवा करेगा, और उसका कृपा-पात्र बनेगा।
36 तेरे परिवार के बचे हुए पुरुष उसके पास जाएँगे और चांदी के एक सिक्के के लिए, रोटी के एक टुकड़े के लिए भूमि पर झुककर उसका अभिवादन करेंगे। वे कहेंगे: ‘कृपाकर, हमें पुरोहित के किसी भी सेवा-कार्य के लिए भरती कर लीजिए जिससे हम रोटी का एक टुकड़ा खा सकें।’ ” ’